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यहां कभी होती थी नर बलि, पांडवों ने किया कुछ ऐसा कि बन गया देवस्थल

नवनीत बत्ता |

हिमाचल ऐसी देवभूमि है जहां पर धार्मिक तौर पर कुछ भी संभव है और ऐसा ही एक अजूबा ममलेश्वर महादेव के रूप में जिला मंडी के करसोग के ममेल गांव में है। जहां पर एक ऐसा मंदिर तो है ही जहां किसी ज़माने में नरबलि होती थी। लेकिन, उसके साथ ही ममलेश्वर महादेव का मंदिर भी है जहां पर ना सिर्फ शिव पार्वती की मूर्ती रूप में स्थापित हैं साथ ही एक कुंड भी है जो 5000 सालों से लगातार जल रहा है।

ममलेश्वर महादेव का मंदिर पांडवों से जुड़ा माना जाता है और ये  महाभारत के उस अध्याय में भी आता है जिसमें कहा गया है कि अज्ञातवास में पांडव जब इस गांव में एक घर में वो रुके थे तो घर के लोग अचानक रोने लगे। युधिष्टर ने मुखियां से रोने का कारण पुछा तो उसने बताया की  एक राक्षश यहां हर दिन एक बलि लेता है और आज  उसके बेटे की उस राक्षश के भोज बनाने की तैयारी है। इसलिए पूरा परिवार दुखी है।

युधिष्टर ने भीम को इस काम लिए राक्षश के पास भेजा और भीषण  युद्ध के साथ भीम ने उसको मार गिराया। इस तरह से गांव में ख़ुशी का माहौल बना, हवन कुंड जलाया गया।  हवन कुंड को ऐसा बरदान मिला की आज तक ये कुंड जला हुआ है।

इसी तरह से मंदिर में एक 200 ग्राम बजनी गेहूं का दाना है जो पांडव काल का है और पुजारी के पास ही हिफाजत से रखा जाता है ,जब भी किसी ने देखना हो तो पुजारी ही उसको दिखाते हैं। भीम का ढ़ोल  भी मंदिर में टंगा हुआ है।

इसके साथ ही यहां 5 शिवलिंग एक कतार में स्थापित हुए हैं जो पांडवों ने स्थापित किये थे और जिनकी पूजा करने से इच्छा की पूर्ती होती है ।

मंदिर के साथ ही एक और मंदिर है जहां पर कभी भूड़ा यागय होता था जिसमें नरवलि दी जाती थी। मंदिर सदियों से बंद पड़ा है और सिर्फ मंदिर के पुजारी ही उसमें पूजा के लिए जाते हैं। मान्यता है की नर बलि बंद होने के चलते ही आम आदमी का मंदिर में जाना इस लिए बंद हो गया। क्योंकि जो भी जाता था उसके साथ कुछ न कुछ बुरा अनुभव रहता था।