हिमाचल प्रदेश के कांगड़ा स्थित ब्रजेश्वरी शक्तिपीठ मां का एक ऐसा धाम है, जहां पहुंचकर भक्तों का हर दुख-तकलीफ मां की एक झलक भर देखने से दूर हो जाते हैं। ब्रजेश्वरी देवी धाम 52 शक्तिपीठों में से मां की वह शक्तिपीठ जहां सती का दाहिना वक्ष गिरा था और जहां तीन धर्मों के प्रतीक के रूप में मां की तीन पिंडियों की पूजा होती है। पुराने समय में नगरकोट धाम से मशहूर अब कांगड़ा मां के शक्तिपीठों में से एक है।
कहते हैं कि जब मां सती ने पिता द्वारा किए गए शिव के अपमान से कुपित होकर अपने पिता राजा दक्ष के यज्ञ कुंड में कूदकर अपने प्राण त्याग दिए थे, तब क्रोधित शिव उनकी देह को लेकर पूरी सृष्टि में घूमे। शिव का क्रोध शांत करने के लिए भगवान विष्णु ने अपने चक्र से माता सती के शरीर के टुकड़े-टुकड़े कर दिए। शरीर के यह टुकड़े धरती पर जहां-जहां गिरे वह स्थान शक्तिपीठ कहलाए। मान्यता है कि यहां माता सती का दाहिना वक्ष गिरा था इसलिए यहां पर ब्रजेश्वरी धाम शक्तिपीठ में मां के वक्ष की पूजा होती है।
तीन धर्मों के प्रतीक में मां की तीन पिंडियों की होती है पूजा
माता ब्रजेश्वरी का शक्तिपीठ अपने आप में अनूठा और विशेष भी है। यहां मात्र हिंदू भक्त ही शीश नहीं झुकाते बल्कि मुस्लिम और सिख धर्म के श्रद्धालु भी इस धाम में आकर आस्था के फूल चढ़ाते हैं। बज्रेश्वरी देवी मंदिर के तीन गुंबद इन तीन धर्मों के प्रतीक हैं। पहला हिंदू धर्म का प्रतीक है, जिसकी आकृति मंदिर जैसी है तो दूसरा मुस्लिम समाज का और तीसरा गुंबद सिख संप्रदाय का प्रतीक है।
तीन गुंबद वाले और तीन संप्रदायों की आस्था का केंद्र कहे जाने वाले माता के इस धाम में मां की पिडियां भी तीन ही हैं। मंदिर के गर्भगृह में प्रतिष्ठित यह पहली और मुख्य पिंडी मां ब्रजेश्वरी की है। दूसरी मां भद्रकाली और तीसरी और सबसे छोटी पिंडी मां एकादशी की है।
पांच बार होती है मां की आरती
मां के इस दरबार में पांच बार आरती का विधान है, जिसका गवाह बनने की ख्वाहिश हर भक्त के मन में होती है। कहते हैं जो भी भक्त मन में सच्ची श्रद्धा लेकर मां के इस दरबार में पहुंचता है उसकी कोई भी मनोकामना अधूरी नहीं रहती। फिर चाहे मनचाहे जीवनसाथी की कामना हो या फिर संतान प्राप्ति की लालसा, मां अपने हर भक्त की मुराद पूरी करती हैं।
भगवान भैरव की मूर्ति की है विशेषता
मंदिर परिसर में ही भगवान भैरव का भी मंदिर है। इस मंदिर में महिलाओं का जाना वर्जित हैं। यहां विराजे भगवान भैरव की मूर्ति विशेष है। कहते हैं कि जब भी कांगड़ा पर कोई मुसीबत आने वाली होती है तो इस मूर्ति की आंखों से आंसू और शरीर से पसीना निकलने लगता है। तब मंदिर के पुजारी विशाल हवन का आयोजन कर मां से आने वाली आपदा को टालने का निवेदन करते हैं। यह ब्रजेश्वरी शक्तिपीठ का चमत्कार और महिमा ही है कि आने वाली हर आपदा मां के आशीष से टल जाती है।
कांगड़ा का इतिहास
कांगड़ा पहले नगरकोट के नाम से प्रसिद्ध था। कहा जाता है कि इसे राजा सुसर्मा चंद ने महाभारत के युद्ध के बाद बसाया था। छठी शताब्दी में नगरकोट जालंधर व त्रिगर्त राज्य की राजधानी था। 18वीं शताब्दी में राजा संसार चंद कटोच के राज्यकाल में यहां पर कला कौशल का बोलबाला था। कांगड़ा कलम विश्वविख्यात है और चित्रशैली में अनुपम स्थान रखती है। कांगड़ा किले, मंदिर, बासमती चावल और कटी नाक की दौबारा जोड़ने और नेत्र चिकित्सा के लिए दूर-दूर तक विख्यात था।
ब्रजेश्वरी मंदिर का इतिहास
ब्रजेश्वरी मंदिर इस क्षेत्र का सबसे लोकप्रिय मंदिर है। कहा जाता है पहले यह मंदिर बहुत समृद्ध था। इस मंदिर को बहुत बार विदेशी लुटेरों द्वारा लूटा गया। महमूद गजनवी ने 1009 ई. में इस शहर को लूटा और मंदिर को नष्ट कर दिया था। यह मंदिर वर्ष 1905 में जोरदार भूकंप से पूरी तरह नष्ट हो गया था। 1920 में इसे दोबारा बनवाया गया।